Wednesday 16 April, 2008

कुछ लोग अभी भी साहिल से, तूफ़ान का नज़ारा करते हैं

मोईन अहसान जज़्बी की शायरी |
दूसरा शेर बहोत बढ़िया है

हम दहर के इस वीराने में, जो कुछ भी नज़ारा करते हैं
अश्कों की ज़बान मे कहते हैं, आहों से इशारा करते हैं

ऐ मौज-ए-बला, उनको भी ज़रा, दो-चार थपेडे हलके से
कुछ लोग अभी भी साहिल से, तूफ़ान का नज़ारा करते हैं

क्या जानिए कब ये पाप कटे, क्या जानिए वो दिन कब आए
जिस दिन के लिए, दुनिया में, क्या-कुछ न गवारा करते हैं

क्या तुझको पता, क्या तुझको ख़बर, दिन रात ख्यालों मे अपने
ऐ काकुल-ए-गेती, हम तुझको, दिन-रात संवारा करते हैं

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